हमारे रिश्तों का भी अजब-गजब मोड़ है,
आज़-कल खोखले रिश्तों का दौर है,
इस अर्थ-युग में प्यार से जीवन रीता है,
यहाँ इंसान खोखलेपन मे जीता है..
संपणता के मद मे खुलकर हँसना भूल गया ,
अर्थ-युग प्रेम की पराकाष्टा ही लूट गया,
अब तो नोटों के बंडल से क़ाज़ोर हो गयी रिश्तों की डोर,
चारों
ओर मची है होडा-होड़,
जो लक्ष्मीवान् है वो ही चरित्रवान् है,
मध्यम-वर्गीय इंसान का ना कोई मोल है,
बदल गये रिश्तों के माप-दंड,
शुद्ध, निश्छल प्रेममयी इंसान की कोई कीमत नहीं ,
इस अर्थ-युग मे खोखले रिश्ते ही अनमोल है.
आज़कल खोखले रिश्तों का दौर है.................