भारत में पर्वो की लंबी श्रंृखला है एक ही पर्व सारे देश में अलग-अलग नाम तथा तरीके से मनाया जाता है। इसी प्रकार मकर संक्रांति एक बड़ा त्यौहार है, जिसे सारे भारत मंे धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में संक्रांतिः-तिल-गुड़ घ्या, ग¨ड़-ग¨ड़ ब¨ला, कहते हुए, तिल के साथ गुड़ मिलाकर देना शुभ माना जाता है। संक्रांति के दिन हल्दी-कुम-कुम लगाकर महिलाएं एक दूसरे क¨ क¨ तिल-गुड़ देती हैं। इसका अर्थ है कि सभी पिछले बुरे अनुभव भूलकर प्रेम और सौहार्द से रहें। भोजन में तिल-गुड़ से बनी पूरणप¨ई विशेष पकवान के रुप में जरुर बनाई जाती है। तमिलनाडुः-तमिलनाडु में संक्रांति पोंगल नाम से प्रसिद्ध है। यह किसान का सबसे बड़ा पर्व है। इस दिन मीठे-चावल तथा दाल-चावल मिलाकर पुलाव बनाया जाता है।इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है। सुबह से ब्रह्म मुहूर्त स्नान कर स्त्रियाँ दरवाजें के सामने बड़ी सी रंग¨ली बनाती हैं और उंगते सूर्य की पूजा करती हैं। इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गाय और बैल को नहलाकर रंगा और पूजा जाता है। पंजाबः- यहां मकर संक्रांति उत्सव ल¨हरी के नाम से जाना जाता है। संक्रांति से एक दिन पूर्व शाम को लकड़ी का बड़ा सा अलाव जलाया जाता है। उसके चारों ओर घूमकर परिवार के सदस्य ओर मित्रों नृत्य करते हैं। गन्ना और रेवड़ी प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है। फिर सभी आग के इर्द-गिर्द बैठकर भोजन हैं। उत्तरप्रदेशः- यहां मकर संक्रांति का त्यौहार खिचड़ी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन चावल के साथ हरी मूंगदाल मिलाकर खिचड़ी के रुप में बांटते हैं। तिल के लड्ड प्रमुख व्यंजन के रुप में बनाये जाते हैं। एक माह का विशाल मेला आय¨जित किया जाता है। इस दौरान पवित्र गंगा-यमुना-सरयू के संगम में स्नान करना बड़ा शुभ माना जाता है। बंगालः-गंगा सागर मेले के आयोजन के साथ बंगाल मंे संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हजारों -लाख¨ं शृद्धालु इस पवित्र पर्व पर गंगा सागर में स्नान कर अपने पाप धोते हैं तथा अपने पितरों के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। आंध्रप्रदेशः-आंध्रप्रेदश में संक्राति का पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन- भोगी-पोंगल, दूसरे दिन संक्रांति तथा तीसरे दिन कनुमा पोंगल कहलाता है। चतुर्थे दिन पर्व का समापन मुक्कानुमा के रुप में किया जाता है। सुबह स्नान कर घर के प्रमुख द्वार पर रंगोली डालना, भजन गाना और माना जाता है। तेलगू में इसे पेडा-पेन्डुगा कहते हैं। गुजरातः-संक्रांति पर्व क¨ गुजरात में सामाजिक त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। यहां पर इस पर्व पर किया जाने वाले पतंग¨त्सव विश्व विख्यात है। इस दिन उपहार देने का विशेष महत्व है। घर के बड़े-बूढ़े छोटों को उपहार देते हैं। पडौसी एवं मित्रों एक दूसरे को देकर सद्भावना बढ़ाते हैं। गुजरात में छात्र वृत्ति देकर विद्यार्थीओं को उच्च शिक्षा के लिए भेजना इस पर्व की विशेषता है। कर्नाटकः-कर्नाटक में नामक तिल-नारियल-शक्कर के मिश्रण को पर्व का स्वागत किया जाता है। गन्ने का आदान-प्रदान भी शुभ माना जाता है। गाय-बैल क¨ नहलाकर सजाते हैं और ढोल बजाकर गलियों , घूमायें जाते हैं। रात में जलाकर जानवरों को उसके ऊपर से कुदाया जाता है। इलू बेला थिंडू-अ¨ले माथूआडू ब¨लकर इलू बांटा जाता है। केरलः-केरल में अयप्पा के पूजकों चालीन दिवसीय पर्व मनाया जाता है। यह विशाल पर्व सबरीमाला में समाप्त ह¨ता है। उड़ीसाः-उड़ीसा के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में संक्रांति का त्यौहार नववर्ष के रुप में मनाया जाता है। अलाव जलाकर नाच, गाकर पर्व का स्वागत किया जाता है। सब एक जगह एकत्रित होकर भोजन करते हैं तथा हस्तकला की वस्तुओं का बाजार लगाया जाता है। आसामः-आसाम में संक्रांति पर्व भ¨ग¨ली बिहू के नाम से जाना जाता है। ब्रह्म मुहूर्त में स्नानकर दान किया जाता है। सूर्य की पूजा कर पूर्वज¨ं के लिए तर्पण किया जाता है। शाम को-पुरुष एक साथ एकत्रित होकर आग जलाकर नृत्य करते हैं। हिन्दू धर्म में व्रत कथा दान की परंपरा विशिष्ट महत्व रखती है। ग्रीष्म ऋतु में जल दान, शीत ऋतु में घी दान और बरसात में दान का विशेष महत्व पुरानों में बताया गया है। सूर्य की दशा के आधार पर देवों निशाकाल तथा प्रभातकाल परिभाषित किया गया है। पुरानों के अनुसार सूर्य दक्षिणायन होते हैं तब देवों का निशाकाल माना जाता है तथा जब सूर्य उत्तरायन होते हैं, तब देवों का प्रभातकाल होता। सूर्य के उत्तरायन ह¨ने का पर्व मंकर संक्रांति के रुप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान की महिमा को महान बताया गया है। इस दिन गंगा स्नान करके, गंगा के तट पर ऊनी तथा घी का दान करना शुभ माना जाता है। इस दिन जप, तप, अनुष्ठान किये जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन किया गया दान दानों के बराबर होता इस पर्व के दिन तिल के लड्डू बनाकर दान किये जाते हैं, हरी मूंग की दाल तथा चावल मिलाकर दान करना और बनाकर खाना भी शुभ माना जाता है। भारत के अलग-अलग प्रान्तों में मकर संक्रांति का त्यौहार ढंग से मनाया जाता है। भारत के पर्व सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सभी देव तथा देवियां मानव का रुप धरकर संगम में स्नान करने आते हैं। गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर स्नान कर वे नवीन प्रभात का स्वागत करते हैं। इसीलिए संगम पर स्नान करना इस दिन अति शुभ माना जाता है। गंगा के तट पर मेले का आय¨जन किया जाता है। जिससे उत्सव का मजा द¨ गुना ह¨ जाता है। दक्षिण भारत का पर्व पोंगल संक्राति पर्व दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से मनाया जाता है। पोंगल में वर्षा के देव इंद्र की पूजा की जाती है। जिससे भरपूर वर्षा हो और फसल। यह पर्व ’इंद्रान’ भी कहलाता है। यह पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है, चतुर्थ दिन इसका समापन होता यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा त्यौहार। इसका पहला दिन पोंगल कहलाता है। इसमें घर को तरह साप किया जाता हैं। आंगन में पानी सींचकर चावल के आटे से सुंदर रंग¨ली बनाई जाती है। कहीं-कहीं गाय के से बने कंडे में कद्दू का पू ल सजाया जाता है। चावल, गन्ना और हल्दी के पौधे लाकर पूजा के लिए रखे जाते हैं। रात्री के समय आग जलाई जाती है। जिसमें घर का बेकार, अनुपय¨गी लकड़ी आदि का सामान जला दिया जाता है। लड़कियां उस आग के इर्द-गिर्द नृत्य करती है। दूसरा दिन सूर्या पोंगल कहलाता है। जिसमें सूर्य की पूजा की जाती है। दरवाजे के सामने सुबह ही रंगोली बनाई जाती है। इसे कोलम हैं। महिलाएं बड़ी दिलचस्पी से घंटों इसे पूरा करती है। इस दिन दाल चावल को मिलाकर शक्कर डालकर, उपादान आने तक उबाला जाता है। सी उपादान को देखकर बच्चे पोंगल पोंगल पुकारते हैं। सूर्य की पूजा करके यही पोंगल भोग लगाया जाता है। इसी प्रकार के अन्य पकवान चावल से ही बनाएं जाते हैं। सामूहिक भोजन आयोजित किये जाते हैं। तीसरा दिन मत्तू पोंगल है। इस दिन गाय- बैलों को नहलाकर रंग लगया जाता हैं। उनके सीग को सजाया जाता है। गणेश और पार्वती की पूजा की जाती है। बैलो के सींगों में रूपये बांधकर छोड़ हैं और बड़े-बड़े पहलवान उनसे लड़कर रूपये ख¨लने का प्रयास करते हैं। सब ल¨ग रात में एक साथ मिलकर भ¨जन करते हैं। पोंगल का पर्व का चतुर्थ समापन का ह¨ता है, इसे कनुम पोंगल कहते हैं। धरती पर जीवन के प्रतीक सूर्य की पूजा के बाद, सूर्य की प्रतिमा पर गन्ने के रस की बूंदे गिराई जाती है। रक्षा-बंधन और भाई-दूज की तरह बहने अपने भाइयोंको सुख और की प्रार्थना करती हैं। इस दिन लोग एक दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएं देते हैं। तटस्थता बढ़ाएं मानव में वासना की परिभाषा न गुणों में आती है और दुर्गुणों में। परंतु वासना ही वह आधार है जो उसकी अंतःकरण की प्रवृत्ति क¨ बताता है। प्रवृत्ति से उसकी ल¨लुपता भी उजागर ह¨ती है और निर्लिप्तता भी। मनुष्य की आकांक्षाएं असंख्य हैं। उन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना असंभव है, किंतु आंशिक रुप से नियंत्रित किया जा सकता है। वासना से ग्रस्त मस्तिष्क अंतिम समय में भी अपनी इच्छाओं वशीभूत देह त्याग करता है। यही उसके अगले जन्म का कारण बनता है। ईश्वर ने इस नश्वर संसार में प्राणियों के असंख्य रुप बनाये हैं, जो उनके पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर उन्हें मिले। मनुष्य का जन्म मिलना सबसे कठिन है। यदि मनुष्य अपनी वासना को कर लेता है और अंतःकरण में ज्ञान का प्रकाश जग जाता है तो वह इस संसार के आवागमन से मुक्त होकरमोक्ष प्राप्त होता है। सांसारिक आवागमन से मुक्ति का उपाय करने की क्षमता केवल मानव मस्तिष्क को दी गई है। यदि वह अपने कर्मो से इच्छ शक्ति पर विजय प्राप्त कर लेता है तो विजय का मार्ग प्रशस्त हो है। मोह के पाश से मुक्त होना आसान नहीं। मोह का जाल इतना शक्तिशाली है कि वह देह के भोग और के रोग से मानव को बांधता चला जाता है। मोह के बंधन में जकड़ा हुआ मनुष्य, मोक्ष की गति को समझ ही नहीं पाता। मोक्ष की गति को वाले विरले ही होते हैं। जो मोह के पास से मुक्त हो जाता है, जो अपनों दूरी स्वीकार कर लेता है और जो आकर्षण से खुद को बचा लेता है, वहीं शरणागति की सीढ़ी तक पहुंचने में सफल होता है।