राष्ट्र सत्ता के पक्ष और विपक्ष में हुंकार भरते हुए
ख्वाबों में तरक्की की एयर-लाइंस घूरते हुए
कंकरीले
पथरीले
रेतीले
राहों से गुजरकर उसकी मुस्कान शोख और दबंग बन चली है..
पहले प्यार कि नाकामी पे गमगीन होना छोड़.
आजाद ख्याल लिए हौसले कि पोटली सम्हाल रक्खी है..
घर कि हिंसा से ही नहीं ,
समाज के दानवों से भी लड़ने के व्यूह बना रही है..
राष्ट्र के सिरमोर खेल में "जननी जन्म भुमिस्च,स्वर्गादपी गरीयसी"
की आन बना रक्खी है..
हर बात में उसके जीत की आश नजर आती है .
मुखड़े पे उसके मुक्त सोच कि आभा नजर आती है.....