मधुबनी जिले के एक छोटे से गाँव रामपुर में जन्म हुआ । प्रारंभिक शिक्षा गाँव के प्राथमिक विद्यालय में हुई । बाद में पिता के साथ धनबाद (अब झारखण्ड में) में रहना हुआ । वहाँ डी0 0 वी0 स्कूल से १०+२ किया । धनबाद के पी0 के0 राय स्मृति कालेज से ग्रैजुएशन और फिर विनोबा भावे विश्विद्यालय हज़ारीबाग से अँग्रेज़ी में स्नातकोत्तर स्वर्ण मेडल लेकर पास किया । उसके बाद ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग से एम0 बी0 0 (फाइनांस) उत्तीर्ण किया । दिल्ली के भारती विद्याभवन से जनसंचार एवं पत्रकारिता में पोस्ट ग्रैज़ुएट डिप्लोमा पास किया । धनबाद के स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का नियमित प्रकाशन एवं स्थानीय कवि सम्मेलनों में भाग लेते रहे । एक महत्त्वपूर्ण लघु पत्रिका 'कतार' में कविता प्रकाशित हुई । बाबा बटेसरनाथ उपन्यास को आधार बना कर लिखी एक कविता को जब स्वयं बाबा नागार्जुन ने पढ़ा तो उन्होंने कुछ इस तरह टिप्पणी की "अरुण तुम्हारी यह कविता मुझे उद्वेलित कर रही है. कभी सुविधानुसार तुम मेरे साथ एक सप्ताह रहो।" आजकल भारत सरकार में कनिष्ठ अनुवादक ।

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प्रतिस्पर्धा


नहीं चाहिए
मुझे
तुम्हारे हिस्से की
धूप
हवा
पानी
नहीं है
मेरे लिए कोई
प्रतिस्पर्धा


नहीं चाहिए
मुझे
आकाश
चाँद
सितारे
और आकाश गंगाए
नहीं है
मेरे लिए कोई
प्रतिस्पर्धा


नहीं पहुचना
मुझे
क्षितिज
तक
नहीं है
मेरे लिए कोई
प्रतिस्पर्धा


मुझे
देनी है तुम्हे
जरुरत भर
धरती
और
इसके लिए
प्रतिस्पर्धा है
मेरी
स्वयं से

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समय के साथ


कम हो रहे हैं
खेत और खलिहान
बढ़ रही हैं
अट्टालिकाए
ए़क से बड़े ए़क
ए़क से ऊँचे ए़क
और सब के सब
प्रकृते के गोद में
पर्यावरण अनुकूल
हरे भरे खुले वातावरण में
होने के दावे के साथ...



चौड़ी हो रही हैं
सड़के
और अतिक्रमण
के शिकार हो रहे हैं
हवा
पानी और
धूप
अपने हिस्से की
जिंदगी नहीं
जी पा रहे हैं
वृक्ष


ख़रीदे
जा रहे हैं
खेत
बस रहे हैं
खाली शहर
बिक रहे हैं
स्वाभिमान
अस्मिता
और भविष्य


नए नए
समझौतो और
ज्ञापनो पर
हो रहे हैं
हस्ताक्षर
बंद कमरों में
बदले जा रहे हैं
भूगोल
और सौदा
हो रहा है
धरती के गर्भ का
विस्थापित
हो रही हैं
नदिया
जंगल
और
तथाकथित
जंगली जन

समय के साथ
कम हो रहे हैं
ख़त्म हो रहे हैं
विलुप्त हो रहे हैं
आप/हम/हमलोग

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संज्ञा की परिभाषा

बेटे ने कहा
पापा
संज्ञा
की परिभाषा है
'
किसी
वस्तु या
स्थान के नाम को
कहते हैं
संज्ञा '
क्योंकि
आपके लिए
व्यक्ति भी
ए़क वस्तु ही है
और
कहते हैं आप
आज के समय में
भाव का
जीवन में
नहीं है
कोई स्थान

निरुत्तर मैं !