आदरणीय जया केतकी शर्मा जी "विश्वगाथा" परीवार के साथ सहसंपादक के रूप में कार्यरत तो हैं ही, साथ ही हिन्दी साहित्य की जानीमानी वेबपत्रिका "सृजनगाथा" की सहसंपादक बनकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहीं हैं | हम सब की शुभाकामनाएं और बधाई |
- पंकज त्रिवेदी

आभा की सास उसे समझा रही थी कि जो भी बाहर का काम है जल्दी निबटाकर खाना खा लो। फिर घर के बाहर मत निकलना, ग्रहण का सूतक शुरु हो जाएगा। एकसी अनेक बातें गर्भवती महिलाओं को समझाई जाती हैं। हम में से बहुत से लोग इन्हें दकियानूसी कहकर अनसुना भी कर देते हैं। कारण है कि ग्रहण शब्द को ही हम विपरीत अर्थ में लेते हैं। र्षा का मौसम है कहीं कम तो कहीं अधिक होगी। उसे ग्रहण का प्रकोप माने। अपनी दिनचर्या प्रतिदिन की तरह ही करें।

भारत तथा विष्व के अनेक देश 15 जून को पूर्ण चंद्र ग्रहण के दृष्य का लाभ उठाएंगे। अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया भारत और पश्चिमी आस्ट्रेलिया से इस पूर्ण चंद्र ग्रहण के नजारे को देखा जा सकेगा। भारत में चंद्रग्रहण 15 जून की रात 10.53 पर शुरू होगा और 16 जून की सुबह 03.32 तक रहेगा। ग्रहण एक खगोलिय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्त्रोत जैसे सूर्य और पृथ्वी के बीच जाता है जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिये अवरोध हो जाता है।

इनमें मुख्य रुप से पृथ्वी के साथ होने वाले ग्रहणों में उल्लेखनीय हैं, चंद्रग्रहण - इस ग्रहण में चाँद या चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी जाती है। ऐसी स्थिती में चाँद पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। ऐसा पूर्णिमा के दिन संभव होता है। ग्रहण का देसरा रूप जिससे हम परिचित हैं सूर्यग्रहण है, इसमें चाँद सूर्य और पृथ्वी एक ही सीध में होते हैं और चाँद पृथ्वी और सूर्य के बीच होने की वजह से चाँद की छाया पृथ्वी पर पड़ती है। सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन होता है।
पूर्ण ग्रहण तब होता है जब खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी पर प्रकाश पूरी तरह अवरुद्ध हो जाये। इसी प्रकार आंशिक ग्रहण की स्थिती में प्रकाश का स्त्रोत पूरी तरह अवरुद्ध नहीं होता। चंद्रग्रहण में चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी जाती है। ऐसी स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन ही होता है। 15 जून को चंद्र ग्रहण होने वाला है। इस ग्रहण का असर सभी लोगों के कार्यक्षेत्र और बिजनेस पर पड़ेगा अगर इस ग्रहण पर अपने प्रोफेशन के अनुसार उपाय किए जाए तो बिजनेस और कार्यक्षेत्र में होने वाले नुकसान से बच सकते हैं। आकाशीय ग्रहों नक्षत्रों के निश्चित दिशा एवं चक्र में भ्रमण करते हुए ग्रह एक-दूसरे के निकट जाते हैं, तो कभी अपने आकार से आंशिक तो कभी पूर्णतः ढंक लेते हैं। इसे को चंद्रग्रहण लगना कहा जाता है। सूर्य के अदृश्य होने को सूर्यग्रहण और चंद्र के अदृश्य होने को चंद्रग्रहण कहा जाता है।

1 जून 2011 को हुए ग्रहण से इस महीने में आसमान में तीन ग्रहण होंगे। इनमें दो आंशिक सूर्यग्रहण और एक पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। पहला घटनाक्रम 1-2 जून की रात को आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में हुआ, जिसे भारत में नहीं देखा जा सका। वर्ष 2011 में छः ग्रहण लग रहे हैं, जिनमें चार सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण शामिल हैं। वर्ष का पहला ग्रहण भी सूर्यग्रहण अल्प खग्रास था, जो चार जनवरी को लगा था। दो जून के सूर्यग्रहण के एक पक्ष बाद 15 जून को खग्रास चन्द्रग्रहण होगा, जबकि उसके एक पक्ष बाद एक जुलाई को खग्रास सूर्यग्रहण होगा। इस प्रकार एक महीने में तीन ग्रहण, एक चन्द्रग्रहण और दो सूर्यग्रहण होंगे।

आकाश में ग्रहण की घटनाओं में रुचि रखने वाले 15 जून को पूर्ण चंद्रग्रहण देखने का लाभ ले सकेंगे। 15 16 जून को खग्रास चंद्रग्रहण पड़ेगा, जो भारत में मध्य रात्रि ११:51 बजे प्रारंभ होगा, जो 2:30 मिनट पर खग्रास स्थिति में समाप्त होगा। इस समय तक चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की छाया से ढंका रहेगा। सूतक 15 जून की दोपहर 2 :54 मिनट से शुरू होगा। इस समय प्राकृतिक अस्थिरता के कारण मानसून कहीं कम, कहीं अधिक प्रभावी होने की संभावना हैं।

ग्रहण से संबंधित अनेक भ्रांतियों के चलते पंडित और पुजारियों का भला हो जाता है। मसलन पहले से ही संचार माध्यमों के सहारे जनता को आगाह कर दिया जाता है कि इस ग्रहण पर तांबे के बर्तन में गेहूं भर के दान दें। इस ग्रहण पर शिवलिंग का गाय के कच्चे दूध से अभिषेक करना चाहिए। कुछ तो अपना भरण पोषण करने के उद्देश्य से उसे उत्सव मान बैठे हैं घोषणाकर दी है ग्रहण पर्व पर हनुमान मंदिर में तेल दीपक लगाएं। किसी मंदिर में पीले कपड़े में चने की दाल का दान दें। मंदिर में सफेद कपड़े में चावल के साथ रूई और घी का दान देना चाहिए। हनुमान मंदिर, शनि देव या भैरव मंदिर में तेल का दीपक लगाना चाहिए।

कुछ इसी प्रकार से जानवरों का भी भला हो जाता है। इस ग्रहण पर गाय को हरी घास खिलाएं। और भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें पढ़े-लिखे लोग भी मान ही लेते हैं कि ग्रहण मोक्ष उपरान्त पूजा पाठ, हवन- तर्पण, स्नान, छाया-दान, स्वर्ण-दान, तुला-दान, गाय-दान, मन्त्र- अनुष्ठान आदि श्रेयस्कर होते हैं। ग्रहण मोक्ष होने पर सोलह प्रकार के दान, जैसे कि अन्न, जल, वस्त्र, फल आदि जो संभव हो सके, करना चाहिए।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण में ग्रहण का कोई आध्यात्मिक महत्त्व हो अथवा हो किन्तु दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता। बडे बडे शोधकर्ता एवं खगोलविद इसके इन्तजार में रहते हैं। क्योंकि ग्रहण ही वह समय होता है जब ब्रह्मंाड में अनेक विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित होती हैं जिससे कि वैज्ञानिकों को नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है। 1968 में लार्कयर नामक वैज्ञानिक ने ग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था। आईन्स्टीन का यह प्रतिपादन भी ग्रहण के अवसर पर ही सही सिद्ध हो सका, जिसमें उन्होंने अन्य पिण्डों के गुरुत्वकर्षण से प्रकाश के पडने की बात कही थी। चन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है किन्तु सूर्यग्रहण अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। संसार के समस्त पदार्थों की संरचना सूर्य रश्मियों के माध्यम से ही संभव है। यदि सही प्रकार से सूर्य और उसकी रश्मियों के प्रभावों को समझ लिया जाए तो समस्त धरा पर आश्चर्यजनक परिणाम लाए जा सकते हैं। सूर्य की प्रत्येक रश्मि विशेष अणु का प्रतिनिधित्व करती है और जैसा कि स्पष्ट है,प्रत्येक पदार्थ किसी विशेष परमाणु से ही निर्मित होता है। अब यदि सूर्य की रश्मियों को पूंजीभूत कर एक ही विशेष बिन्दु पर केन्द्रित कर लिया जाए तो पदार्थ परिवर्तन की क्रिया भी संभव हो सकती है। इस प्रकार देखें तो अन्य सामान्य ब्रम्हाण्डीय क्रियाओं की तरह यह भी एक क्रिया है। अतः इसे सामान्य माने और अंधविश्वासों से परे रहकर कार्य करें।