ये मन की गहराई की
तह को तलाशने की मंशा....!

ये मन ढूँढता हैं तुम्हें तो पहुंचता हैं

कोशों दूर...

जहां कंकाल सी स्मृतियाँ

आज भी मेरे कदमों की आहट से
अंग मरोड़कर खड़ी हो जाती हैं..

तुम्हारा बिछड़कर लुप्त हो जाना और जैसे

सदियों से दफ़न हुएं उन सपनों को

फिर से जगाना

दुनिया की पैनी नज़रों से

छल्ली होता हुआ वो प्यार
आज भी नज़र आता हैं...

प्यार का दूसरा नाम ही दर्द है...
फिर भी क्यूं तरसते-भड़कते हैं लोग
?

प्यार करना तो माँ ने
अपने गर्भ से सीखाया था

प्यार की परिभाषा के बोज तले दबा हुआ आदमी

कब समझेगा प्यार और अहसास को...

दफ़न हो सकता हैं प्यार?
कईं सवालों के बीच में

प्यार की अडिगता को भी आकलन करने को

मति की दौड़ क्यूं लगाते हैं..
?