सरसता की सौंध में , ज़िन्दगी की चकाचोंध मे,
बिखरी वो ज़िन्दगी अंधरे के साये में.....

बिखर गए हर मोती,टूटे हुए उस हार से,
पलक फलक निहारती, थकी हुई उस हार से....

ऐ खुदा तू बख्स दे ,ज़िन्दगी के रंगीन पल,
अंधरे मे डूब चुका,खता हुई ये दल बदल...

ना मौत आये हमे ना लौट कर ये ज़िन्दगी ही मिली,
जिए जाते है हम उस उम्मीद पर वो कभी लौट कर नहीं मिला....

छुपा कर दिल मे रखते है, सभी इलज़ाम ले ले कर
दिलों के खेल रहे इस कदर जी रहे हैं जख्म सह सह कर....

हर घाव की सिसक पर रोता है ये मन,
अब भूले से ही रह गयी तड़पता है ये मन.....

ज़िन्दगी के इस खेल मे वो भी एक मोहरा बन बैठा,
किसी ने चल दी हम पर कि मात वो भी खा बैठा....

धीमे से उठी हर आहट का, सितमगार ना बनाओ,
मुरझाये फूल को खिलने की, कोशिश का मददगार ना बनाओ...

कलियों को जब पलट कर देखा, तो उसने भी आंसू झरक दीये,
जीवन के हर मर्यादित रूपों को, दिल से ही लिपट लिया...