फादर्स डे स्पेशल

मैंने गाँव देखा हैं, बैल गाडी देखी हैं और हरियाले खेतों में लहलहाते गेहूं के बालियाँ तोड़कर होला खाया हैं | मेरे पास अभी भी प्रकृति की पूंजी संरक्षित हैं | मेरी नौ वर्ष की छोटी-सी बेटी के बाल सँवारकर, उनमें आँगन में खिले गुलाब के फूल से शोभा बढ़ा सकता हूँ ! उसका हंसता चेहरा मुझे दादी माँ की याद दिलाता हैं | कभी-कभी बाल सँवारते समय एकाध जुल्फ सरक जाएँ तब बेटी मीठा उपालंभ करे- "क्या, आप भी पापा....! लाईये मैं खुद ही सँवार लूं....|"
तब आँखों में नमी के साथ उसे देखूं तो लगता है, मनो मेरी बेटी बड़ी हो गयी हैं | वह मुझे छोड़कर चली जाएगी, इसी डर से आँसूं के धुंधलेपन के बीच देखकर उसे कहूं- "अब तेरी जुल्फ नहीं निकलेगी बेटा, मैं ध्यान रखूँगा |" इतना कहकर उसे अपने साथ खाना खिलाकर स्कूल तक छोड़ने के लिए मैंने अभी भी अपना समय बचा रखा हैं | मेरी बेटी मेरा आ...का....श.... हैं |
(झरोखा निबंध संग्रह से)
-पंकज त्रिवेदी