Posted by
Pankaj Trivedi
In:
अतिथि-कविता
जीवन : भावना सक्सेना
कल काटे छाँटे वृक्ष की
नग्न शाख पर उतर आया चाँद
सहलाता हुआ सा
पत्रहीन अकेलेपन को
सींचता चाँदनी से......
तुम जीवन हो
फिर हरे भरे होंगे
कल, कल-कल स्वर
भर देंगे जीवन,
जीवन के आँगन में।
कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता
This entry was posted on 9:33 AM
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अतिथि-कविता
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nice
बहुत गहरे भाव, उम्दा रचना.
कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता
.....
आशा का संचार करती सुंदर रचना . बधाई
भावना सक्सैना जी की यह कविता अच्छी लगी !
कविता की अग्रांकित पंक्तियां रुचती हैं-
"कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता "
===================
भाई पंकज जी,
वन्दे !
आपका यह ब्लोग मैं नियमित देखता रहता हूं !
यदि कभी कोई टिप्पणीं न कर पाऊं तो अन यथा न लें !
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं- बधाई !
आपकी सदा ही जय हो !
यह " झरोखा " क्या है और मेरे पास क्यों नहीं है ?
भावना सक्सैना जी की यह कविता अच्छी लगी !
कविता की अग्रांकित पंक्तियां रुचती हैं-
"कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता "
===================
भाई पंकज जी,
वन्दे !
आपका यह ब्लोग मैं नियमित देखता रहता हूं !
यदि कभी कोई टिप्पणीं न कर पाऊं तो अन यथा न लें !
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं- बधाई !
आपकी सदा ही जय हो !
यह " झरोखा " क्या है और मेरे पास क्यों नहीं है ?
khoobsurat shabdon me bandhe gahre bhav....
बहुत सुन्दर !!!
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