गुजराती से अनुवादित पाँच लघु कविता
(१) करसनदास लुहार
मेरा मशीनगन समेत हाथ
फूलों भरी डाल में रूपांतरित हो जाएगा
फिर आप 'युद्ध' शब्द की
सच्ची व्युत्पत्ति के लिए भटकने लगेंगे
(२) जयंती पंचोली
स्ट्रीट लाईट के खंभे के नीचे
अभी भी
सूरज ऊंघता है !
(३) आर.एस. दुधरेजिया
मैंने जब से अपने पैर के अंगूठे का नाम
'एकलव्य' रखा है तब से पैर की छाप में
अंगूठा पड़ता ही नहीं
और तब भी ठोकर तो लगती ही रहती है बारबार
(४) निरंजन याज्ञिक
एक दिन
आदमी का 'अ' नहीं होगा
पेड़ का 'प' नहीं होगा
गोरैया का 'ग' नहीं होगा
मशीन का 'म' नहीं होगा
टैंक का 'ट' पर तब भी
कविता का 'क' तो होगा ही !
(५) मुकेश मालवणकर
प्रति वर्ष बर्थ-डे केक
काटने का वचन देकर
पोस्टमोर्टम के लिए वह
शव कटता है !!
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अतिथि-कविताएँ
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2 comments:
nice
bahut khoob...
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