गतांक से आगे.. (आठवीं किश्त)


मैंने लोगों की भीड़ के बीच में से अचानक दौड़ लगाई समंदर की ओर..... पहले तो किसी के समझ में कुछ नहीं आया | क्यूंकि मछुआरे का बेटा समंदर में छलांग लगाए तो सहज बात ही थी | ठीक उसी समय किसी का ध्यान मेरी ओर आया | मैं यानी किशन दाईं ओर जो गहरी खाड़ी थी, उस तरफ जा रहा था | सभी का ध्यान उस मत्स्यकन्या के इंतजार में समंदर के बीच में था | शायद मत्स्यकन्या देखने मिले... | किसीने जोर से कहा की किशन तो दाईं ओर की खाड़ी की ओर जा रहा हैं | फिर तो सारे लोग शोर करने लगे | सब लोग मुझे यानी किशन को कह रहे थे कि लौट जाओ | मगर किसी की हिम्मत नहीं थी कि मेरा पीछा करके बचाने आए | मैंने सभी की आवाजें सुनी थी, फिर भी दाईं ओर की खाड़ी में आगे बढ़ता ही गया | शायद सब लोग सोचते होंगे कि कुछ पल पहले किशन दिखता था और अब....? सभी निराश खड़े थे | मछुआरे की जाति में सबसे अच्छा तैराक और युवा किशन सबको पलभर में ही छोड़कर चला गया | एक ही पल में सभी को उसकी कमी महसूस होने लगी |

किशन की माँ ने काले आंसूं बहाने शुरु किये | तब बाप का गुस्सा सातवें आसमान पर था, मगर कुछ ही देर में उन पर भी आसमान टूट पड़ा |

मुझे पिछले कुछ अरसे से एक सपना दिखता था | उसमें मैंने एक मत्स्यकन्या देखी थी | मानों उसके साथ आँख ही मिल गई थी | हमारे बीच का यह तारमैत्रक ने मुझे पागल ही बना दिया था | अब तो हर हाल में मत्स्यकन्या को पाने के लिए मैं उतावला हो गया था | मेरी माँ मुझे बारबार समझाती थी | मत्स्यकन्या हो और वह भी ज़िंदा... यह मानाने को वह बिलकुल तैयार न थी | बाप ने हमेशा मूर्ख कहकर धमकाया था | स्वप्न की इस बात में सत्य कहाँ? यह बात कोई नहीं जानता था | फिर भी मेरे लिए मत्स्यकन्या का अस्तित्त्व था और प्यार में मैं पागल था | शायद, इसीलिए सभी को चकमा देकर समंदर की अभिशाप वाली उस खाड़ी में निकल पडा था | आज मैंने जीवन-मृत्यु की जंग खेलने का निश्चय ही कर लिया था |

जैसे ही मैं समंदर में कूदा कि सब लोग सोचने लगे थे | पुराणों में जो ज़िक्र हैं, शायद मत्स्यकन्या होगी क्या? अचानक सभी की सोच सकारात्मक होने लगी | शायद किशन ने देखी भी होगी | तभी तो उसने समंदर में दौड़ लगाई होगी | सभी के मन में था कि क्या होगा? और सभी को मेरी चिंता भी तो थी |

जैसे ही में खाड़ी में कूदा तो स्वतः ही गहराई तक पहुँच गया | मानों भँवर में फँसने के बाद तुरंत मौत से ही भेंट हो गई | मैं बेहोश सा गिरता हुआ गहराई में पहुँच गया था | अब जाकर थोडा सा स्थिर हो पाया था ! जहां पानी भी शांत था | किसी ऐसी जगह आकर खड़ा हो गया था मैं, जहाँ बड़े बड़े पत्थरों के सिवा कुछ न था | अचानक एक बहुत ही बड़ा सा पत्थर अपनेआप खिसक गया | मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं थी | मैंने जिज्ञासा से अंदर प्रवेश किया | थोडा सा तैरने के बाद अंदर मानो बहुत ही बड़ी सी सुरंग देखने मिली | मैं आगे बढ़ता ही रहा और एक बड़ा सा राजमहल मेरे सामने खड़ा दिखा | वहां देखते ही मैं तो भौंचक्का सा देखता ही रह गया ! कमर तक के पानी में आगे बढ़ता मैं देखने लगा | बहुत बड़े से कमरे थे... धीरे-धीरे मैं एक एक कमरे में देखने लगा | क्या शोभा थी ...! एक कमरे में मैंने धीरे से देखा तो.........

बहुत ही बड़े से कमरे में मत्स्यकन्या को देखते ही मेरा चहेरा खुशी से झूम उठा | बिलकुल ऐसी ही दिखती थी, जैसी मैंने सपने में देखी थी | नुकीला चेहरा, लम्बे-घने काले बाल, तंदुरस्त शरीर, बंद आँखें और अनावृत शरीर ! मैंने उसे गौर से देखा तो सचमुच ही ऊपर का आधा शरीर किसी स्त्री का और कमर से नीचे मछली ही !! मेरे प्रवेश करते ही मानों उन्हें मेरी गंध से पता चला कि कोइ आया हैं | धीरे से आँखें खोलकर उसने मेरे सामने देखा | शायद उसने भी सोचा न होगा... बड़ी सी चमकदार आँखें... उन आँखों का तेज देखते ही मैं खुद को संभाल नहीं पाया | उसके चहेरे का स्मित मेरे रोएं-रोएं में व्याप्त हो गया | वो भी बड़े आश्चर्य और थोड़े से डर या शर्म से मुझे देखती ही रह गई | वह कुछ भी बोल नहीं पाई मगर उनकी खुली आँखों के द्वारा उनके मन का पंखवाला अश्व सचमुच हवा में उड़ने लगा |

मत्स्यकन्या जब समंदर के किनारे पर अनायास किनारे पर पहुँच गई थी तब उसने मेरे जैसे देहधारी मानवों को दूर से देखा था | हकीक़त यह थी कि किनारे पर आते पर्यटकों में स्त्री-पुरुषों के अर्धनग्न आलिंगन का चित्र मत्स्यकन्या के मन पर अंकित हुए थे | मगर खुद से बिलकुल अलग दिखने वाले इंसानों की दुनिया से बेख़बर थी, इसीलिए जल्दी से वह पीछे मूड गई थी | आज फिर ऐसे ही पुरुष के रूप में मैं आ गया था | मत्स्यकन्या के मन का रोमांच उसके चहेरे पर दिख रहा था | उसने शायद सोचा होगा कि समंदर के किनारे पर आलिंगनबद्ध लोग क्यूं ? उनकी चेष्टा में से उन्हें भी जुगुप्सा हुई होगी | मेरे स्पर्श से विचारों में खोई मत्स्यकन्या सभां हो गई थी | उसने मेरे हाथ को हटाने का प्रयास भी किया मगर वो आलिंगन में थी | पुरुष का प्रथम स्पर्श होते ही उनके शरीर में चेतना आ गई | उनकी स्पेर्शेन्द्रिय उत्तेजित हो गई | पल में ही विशाल बाजुओं में वो समा गई | दोनों के एक होने की असंभवता को मैं समझ ही नहीं पाया था | मत्स्यकन्या के लिए स्पर्श में ही सुख था और मैं उनके प्यार में भीगा सा....!!

मैं उनके साथ बहुत सारी बातें करना चाहता था | सालों से जिसे मै सपने में देखता था उसका आज पहलीबार साक्षात्कार हुआ था | मगर मत्स्यकन्या कुछ भी तो समझ नहीं पाती थी | मैंने अपने प्यार-भावनाओं को समझाने के लिए बहुत कोशिश की मगर वो कुछ भी समझ पाती ही नहीं थी | बहुत सारी कोशिशें नाकाम होने के बाद मै निराश हो गया |


(क्रमशः...)