(1)

धू धू जलता हुआ जहां, अखबार उठाया तो देखा.
सुर्ख आसमां, गर्म फिजां, अखबार उठाया तो देखा.

चिथड़ा बचपन रस्ता-रस्ता, खुली हथेली लिए खडा,
बाल दिवस पर चित्र नया, अखबार उठाया तो देखा.

असासे मुल्क से संगे वफ़ा, जाने किसने खींच लिया,
चंद सिक्कों पर खडा जहां, अखबार उठाया तो देखा.

सूरत से इंसान सभी, सीरत की बातें बोलें क्या,
बेदार बिलखती मानवता, अखबार उठाया तो देखा.

इश्क खुदा है सूना कहीं था, खुदा खो गया देखा आज,
हर दिल में नफ़रत के निशाँ, अखबार उठाया तो देखा.

हबीब मेरा हाकिम हुआ, फरमान अजाब सा ये आया,
सच कहना भी जुर्म बना, अखबार उठाया तो देखा.

(2)
जाने कैसे वह दीवाना हो गया.
जिसे समझते थे कि सयाना हो गया.

दर्द सभी अपने छिपाते छिपाते,
दर्द का वह शख्श पैमाना हो गया.

ख्वाहिशे खैरअंदेशी ही ना रखो,
फिर ना होगा, वह बेगाना हो गया.

शम-ए-हकीकत में आज ख़्वाबों का,
ज़हां जला ऐसे, परवाना हो गया.

छा गईं घटाएं फिर यादों की हबीब
आँखों को बरसने का बहाना हो गया.