Posted by
Pankaj Trivedi
In:
अतिथि-कविता
बटोही - प्रवेश सोनी
उजले पैरों से
खुद को समेट कर
धुप
सांझ के
आगोश में
सुनहरी हो गई ,!!
सितारों की
जमीं पर
रात ने
रचे छंद
मधुबन के ..!!
चाँद की
देह में
जल उठे
कई सूरज !!
समंदर को
सुखा देने
वाली प्यास
खड़ी हे
चोखट पर
जलाये नजरो के दीये..!!
गया था जो
इस राह से ,
लोट कर कब ,
आएगा वो बटोही ??
This entry was posted on 7:29 PM
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अतिथि-कविता
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3 comments:
भाई पंकज जी,
जय हो !
आपके ब्लोग पर अतिथि कवि वाला नुस्खा भी चल निकला !
आप इस माध्यम से अच्छी - अच्छी रचनाएं पढ़वा रहे हैं ।
साधुवाद !
आज प्रवेश जी सोनी की कविता पढ़ने को मिली-अच्छी लगी ।
समंदर को
सुखा देने
वाली प्यास
खड़ी हे
चोखट पर
जलाये नजरो के दीये..!!
ये पंक्तियां भाईं !
bahut hi badiya...
bahi saab pranam !
behhad sunder abhivyakti . gahree bhav liye .
sadhuwad
saadar
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