मैं जनता हूँ कि -

तुम्हे अपने पैरों पर खड़ा होना है

तुम्हें अपनी पहचान बनानी हैं

तुम हो कि उसके लिए

चाहे कुछ भी क्यूं न करना पड़े !

ज़िंदगी के आयामों को अपने

कब्ज़े में करना और

आसमाँ को छूने की तुम्हारी

हसरत हमेशा से रही हैं !

मगर ज़िंदगी यही हैं आज के दौर में

किसी के सर को कुचल दो

किसी की इज्ज़त को सरे आम निलाम कर दो

किसी की भावनाओं से खेलो...

या फिर -

किसी के आगे अपने अस्तित्त्व को झुका दो

खुद को भूलकर दूसरों में खुद को ढूंढों

फिर जो असर होगा उसको भी भूल जाओ

दुनिया वाले हैं, कहेंगे यार !

कुछ दिनों की तो बात हैं... सुन लेना....

यही तो है शोर्टकट !

यही तो हैं सफलता की पायदान

यही तो हैं खुद को रौशन दिखाने की चाह

मगर -

जो छूटता है, जो छोड़ता हैं, वोही आखिर जीतता हैं !

शायद यही सबसे बड़ी सफलता पर

चाहे कितनी भी धूल झोंक दो...

सफलता किसीकी मोहताज नहीं होती

न उसे सीढीयों की जरूरत होती हैं न किसी की

तारीफ़ की...!

सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की

ऊंगली पकड़ती हुई,

खेलनी चाहिए हमारे आँगन में...

जहां हमारे कदमों के निशाँ को

कोई मिटा नहीं सकता और वहीं पर तांता लगता हो...!!