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Pankaj Trivedi
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अतिथि-कविताएँ
श्री नन्दकिशोर आचार्य की कविताएँ
१. पत्ता वह क्या करे लेकिन
खिलाता है हरे पल्लव
सूखे पत्तों को लेकिन
गला देता है-
प्यार है
मृत्यु भी है जल
किसी के लिए
पत्ता वह क्या करे लेकिन
जो जल की कामना में
सूख जाता है।
२. खोजती है जो
खोजती है किसको यह
खामोशी से निसरती आवाज
सूने आकाश में
खुद
गुम हो जाती हुई
खामोशी जो व्याप्ति है
खुद
उस तलाश की
खोजती है जो
खुद से निसरती आवाज।
३. मृत्यु खुद भी
अगर मैं काल में हूँ
तो अनन्त क्यों नहीं
अगर मैं दिक में हूं
तो लौट-लौट
क्यों आता नहीं यहीं
बाहर हूँ दिक्काल से
तो मृत्यु फिर क्या कर लेगी मेरा
अगर दिक्काल में है वह
ते मृत्यु खुद भी
मर्त्य कैसे नहीं ?
४. मरुथल भी
हवा के हर मिजाज के साथ
बदल जाता है
उसका रूप
यह मरुथल भी
क्या प्यार करता है
हवा को !
५. कुछ नहीं बोलता है पेड
खिलता है हर लम्हा
तुम-सा
मुर्झा कर झर जाता
मुझ-जैसा
कुछ नहीं बोलता है
पेड
महकाता रहता केवल
झर गये फूल की खुशबू
खिलते फूल में
चुपचाप !
६. तुम्हें क्या
मानी हो मेरा तुम
इससे तुम्हें क्या करना
मानी को मतलब क्या इससे
कौन है शब्द उसका
पूर्ण है खुद में वह
निश्शब्द
चाहे भटकता ही रहे
विकल
उसकी तलाश में शब्द
कविता
शब्द की विकलता है क्या ?
This entry was posted on 8:54 PM
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अतिथि-कविताएँ
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7 comments:
कविताओं में धार है।
*महेंद्रभटनागर
सुंदर कविताएँ
shreshth kavitaen...
sahi arthon me yahi shabd shilp hai.
AAbhar.
दोस्तों, आप सभी का धन्यवाद्.. खुशी हुई |
आदरणीय नंदकिशोर जी की कविताएं " विश्वगाथा" पर देख कर सुखद आश्चर्य हुआ ---पढ़ कर रोमांचित हुआ ! बहुत शानदार कविताएं ! बधाई हो !
Bahut khubsurat kavitae hai ...........accha laga...
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