वेलेन्टाईन की मेघधनुषी शुभ कामनाएँ


धुंधला रहे मंज़र में कुछ ना था स्पष्ट...
ना भूत, ना भविष्य और ना मैं...
कुछ था... तो वर्तमान...
जिसमें देख सकती थी...
धुंधली-सी यादें... ... ...
उन यादों से जुड़े मंज़र...
जो चमकते थे अब भी...
सतरंगी इन्द्रधनुष से...
जिनके चमकते रहने की उम्मीद थी पूरी.....
मेरे सपनों के आसमान में...
पर आसमानी चीजें...
कब छूती है ज़मीन को...
वो तो होती हैं क्षणिक...
खो जाती हैं... ... ...
जाने कहाँ...
जैसे ना था कोई अस्तित्व उनका...
ढूंढते रह जाते हैं 'हम' वो रंग...
और खो देते हैं...
'खुद' का रंग...
इन्द्रधनुष के रंगों में...
मगर
छंटते बादलों के पीछे से...
चमकती किरणें...
करा जाती हैं एहसास...
कि कुछ रंग खोने के बाद ही...
हम देख पाते हैं... असली रंग...
जिसमें कोई बनावट नहीं...
कोई सजावट नहीं...!!