मैं छूना चाहता हूँ

हवा के पहाड़ पर चढाते हुए

उस फूल को

जिसकी पंखुड़ियों के

रंगीन सागर में

तुम्हारी दुनिया का सूरज ढलता है

जिसकी खुशबू के

मदमाते भिनसारे में तुम्हारी दुनिया का सूरज उगता है

मैं छूना चाहता हूँ उस फूल को

जिसे छूते ही

गमगमा उठूँ...

नाभि से ब्रह्माण्ड तक....!