Posted by
Pankaj Trivedi
In:
अतिथि-कविता
जीवन - भावना सक्सेना
कल काटे छाँटे वृक्ष की
नग्न शाख पर उतर आया चाँद
सहलाता हुआ सा
पत्रहीन अकेलेपन को
सींचता चाँदनी से......
तुम जीवन हो
फिर हरे भरे होंगे
कल, कल-कल स्वर
भर देंगे जीवन,
जीवन के आँगन में।
कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता
This entry was posted on 7:26 PM
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अतिथि-कविता
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5 comments:
"कुछ पत्र पुष्प छंट जाने से
जीवन का सार नहीं चुकता
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता"...sundar kavita
बहुत सुन्दर आशाओं से परिपूर्ण जीवंत रचना ..
जीवन मन का वह साहस है
जो कभी कहीं नहीं रुकता..
कोटि कोटि शुभकामनाएं.....
Bahut Khubsurat..........Behtareen kavita...............Badhai sir
सुन्दर आशाओं से परिपूर्ण जीवंत रचना
जीवन मन का वह साहस है ,जो कभी कहीं नहीं रुकता,
कोटि कोटि शुभकामनाएं!
भावना जी बहुत बहुत बधाई मैं आपकी कविता की भाव नदी में बह गया होली की इन्द्रधनुषी शुभकामनाएं |
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