मैदान के आरपार बिछी हैं घास
हर साल मरती हैं, फिर भी जी उठती हैं

जलती हैं पुआल की लपटों में, पर ख़त्म नहीं होती
बासंती हवाएं उसमें फिर से भर देती हैं जान

दूर प्राचीन मार्ग पर टहलती है उसकी महक
उजाड़ कसबे में पत्रे-सी हरियाली छा जाती हैं



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वागर्थ से साभार)