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Pankaj Trivedi
In:
अतिथि-कविता
बबन पाण्डे
लड़की उबाच .....
प्रिय ! तुम व्यर्थ में चिंतित हो
क्या कर लेंगीं
सूर्य की पराबैगनी किरणें
मेरे गोरे वदन को
क्रीम और लोशन किसलिए है //
बहुत दिनों तक
नारी सावत्री बनी रही
कपड़ों से ढंकी रही
विटामिन डी की कमी से
हड्डियां कमजोर हो गयी //
अब नया ज़माना आया है
रोम-रोम में
वासंती वयार बहने दो
भागमभाग में थोडा सा ही सही
काम का खुमार तो जागने दो //
अब खुले वदन पर
बेख़ौफ़ पड़ती है सूर्य किरणे
मुझे मिलती है विटामिन डी
और कवियों को मिलती है
सौन्दर्य की लड़ी //
This entry was posted on 7:28 PM
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अतिथि-कविता
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