"एक और क्रांति का सूत्रपात..." मनोज जोशी
सदियाँ बीत गयी क्रान्ति होते हुए...
हर जमीं पर क्रांति का आगाज होता है..
नयी राजसत्ता आती है !
बदलाव आता है चेहरों में !
मगर बदलता कुछ नहीं !
आम आदमी कल भी सड़क पर था !
आज भी और कल भी रहेगा...!
सूत्रपात होगा फिर एक क्रान्ति का... !
एक नए चेहरे के लिए !
नयी व्यवस्था के लिए !
मगर बदलेगा कुछ नहीं !
आदमी वहीँ खड़ा देखता रहेगा -
बदलते चेहरे ! बदलती व्यवस्था !
खुनी राजप्रासादों में नए षड्यंत्र !
कुछ और ऊँची दीवारें...
कुछ और बौने आदमी और उनकी तुच्छ लिप्साएं...!
देखते सहते फिर होगा एक और क्रांति का सूत्रपात...
एक और क्रांति का सूत्रपात...
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4 comments:
आज का राजतंत्र ही नहीं युगों से चलती आ रही इस व्यवस्था पर जो बदलती नहीं ..किन्तु उसको चलाने वाले बदलते रहते है... वही रूप ले कर ( षड्यंत्री )... और .जमीन का आदमी नहीं बदलता .. पर लिखी यह रव्ह्ना उम्दा .मनोज जी की सुन्दर रचना को पढवाने के लिए आभार...
कविता समय को लिखती है. यही कविता का धर्म है. जाते जाते ऐसा लगा जाने कविता जल्दी ख़त्म हो गई. बधाई
भाई साब प्रणाम !
मनोज जी नमस्कार !
सुंदर कविता .बधाई .
साधुवाद
shankhnaad ho...bahut achhi rachna
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