कदमों के निशाँ - पंकज त्रिवेदी
मैं जनता हूँ कि -
तुम्हे अपने पैरों पर खड़ा होना है
तुम्हें अपनी पहचान बनानी हैं
तुम हो कि उसके लिए
चाहे कुछ भी क्यूं न करना पड़े !
ज़िंदगी के आयामों को अपने
कब्ज़े में करना और
आसमाँ को छूने की तुम्हारी
हसरत हमेशा से रही हैं !
मगर ज़िंदगी यही हैं आज के दौर में
किसी के सर को कुचल दो
किसी की इज्ज़त को सरे आम निलाम कर दो
किसी की भावनाओं से खेलो...
या फिर -
किसी के आगे अपने अस्तित्त्व को झुका दो
खुद को भूलकर दूसरों में खुद को ढूंढों
फिर जो असर होगा उसको भी भूल जाओ
दुनिया वाले हैं, कहेंगे यार !
कुछ दिनों की तो बात हैं... सुन लेना....
यही तो है शोर्टकट !
यही तो हैं सफलता की पायदान
यही तो हैं खुद को रौशन दिखाने की चाह
मगर -
जो छूटता है, जो छोड़ता हैं, वोही आखिर जीतता हैं !
शायद यही सबसे बड़ी सफलता पर
चाहे कितनी भी धूल झोंक दो...
सफलता किसीकी मोहताज नहीं होती
न उसे सीढीयों की जरूरत होती हैं न किसी की
तारीफ़ की...!
सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की
ऊंगली पकड़ती हुई,
खेलनी चाहिए हमारे आँगन में...
जहां हमारे कदमों के निशाँ को
कोई मिटा नहीं सकता और वहीं पर तांता लगता हो...!!
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6 comments:
सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की
ऊंगली पकड़ती हुई,
खेलनी चाहिए हमारे आँगन में...
जहां हमारे कदमों के निशाँ को
कोई मिटा नहीं सकता और वहीं पर तांता लगता हो...!!
Bilkul sahee kaha!Sundar rachana!
सफलता किसी की मोहताज नहीं होती
न उसे सीढीयों की जरूरत होती हैं न किसी की
तारीफ़ की...!
सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की
ऊंगली पकड़ती हुई,
Behtareen Kavita sir........WAH.....
पंकज जी,
वन्दे !
बहुतअ च्छी कविता !
बधाई !
यह पंक्तियां रुचीं -
"सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की
ऊंगली पकड़ती हुई,"
बहुत सुन्दर रचना...हर पंक्ति कथन की गति को एक सामान वेग से आगे बढाती हुवी .. और एक सुन्दर साफ़ शोर्टकट वाले लोगो को नैतिकता का पाठ पढ़ाती हुवी सफलता का असली मायना बताती हुवी ...
सफलता किसीकी मोहताज नहीं होती
न उसे सीढीयों की जरूरत होती हैं न किसी की
तारीफ़ की...!
सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की
ऊंगली पकड़ती हुई,
उम्दा
आदरणीय पंकज भैया,
सादर प्रणाम.
आपकी रचना पुनः पुनः पढ़ने की इच्छा जगाती है...
विशेष कर ये पंक्तियाँ -
"सफलता खुद आनी चाहिए हमारे पुरुषार्थ की
ऊंगली पकड़ती हुई,
खेलनी चाहिए हमारे आँगन में...
जहां हमारे कदमों के निशाँ को
कोई मिटा नहीं सकता....."
मुग्ध करके एकदम बाँध लेती हैं....
सार्थक शिक्षा देती रचना के लिए आभार....
सादर....
kal aapki yah kavita charchamanch par hogi...aap vahan aa kar charchakaar kaa utsaah vardhan karenge ..sadar
चर्चामंच
aur अमृतरस ब्लॉग
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